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इतिहास

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0‘बेसिक और एप्लाइड प्रतिरक्षा विज्ञान’ में अनुसंधान हेतु राष्ट्रीय संस्थान के निर्माण पर 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में ही विचार कर लिया गया था, जब ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी)’ की ‘विज्ञान एवं इंजीनियरिंग शाखा (एसईआरसी)’ ने प्रतिरक्षाविज्ञान को एक प्राथमिक क्षेत्र के रूप में पहचाना था| एसईआरसी की चर्चाओं में मानव और पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिरक्षाविज्ञान अनुसंधान के क्षेत्र में प्रगति की भरपूर संभावनाओं का उल्लेख किया गया था, और इसके परिणामस्वरूप “राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान (रा.प्र.सं.)” की स्थापना के लिए ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर)’, ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर)’ और विभिन्न उद्योगों और एजेंसियों के विशेषज्ञों के साथ परामर्श शुरू किया गया था| इस अनुसंधान केंद्र को प्रतिरक्षा विज्ञान के लिए ‘आईसीएमआर-डव्ल्यूएचओ अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र’ के तत्वाधान में विकसित करने की कल्पना की गई थी, जो कई वर्षों से चिकित्सा विज्ञान के ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स)’ में चलाया जा रहा था| रा.प्र.सं. को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम (1860 के XXI) के तहत 24 जून, 1981 को स्वायत्त सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था| इस संस्थान की पहली गवर्निंग बॉडी (शासी निकाय) की बैठक 27 जुलाई, 1981 को प्रोफ़ेसर एम.जी.के. मेनन की अध्यक्षता में हुई| प्रोफ़ेसर जीपी तलवार को 14 अगस्त, 1981 को मानद निदेशक के रूप में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया गया था| 31 मार्च 1982 को ‘आईसीएमआर-डव्ल्यूएचओ अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र’ का विलय औपचारिक रूप से ‘राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान’ (रा.प्र.सं.) के साथ कर दिया गया| रा.प्र.सं. ने, ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एआईआईएमएस)’ में प्रोफेसर जी पी तलवार को उपलब्ध कराई गई प्रयोगशाला में कामकाज शुरू कर दिया, यह व्यवस्था राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान (रा.प्र.सं.) की पहली बिल्डिंग के निर्माण तक चलती रही जो वर्तमान में भी उसी जगह, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर से ली गई जमीन पर खड़ी है| प्रोफ़ेसर तलवार 2 नवम्बर, 1983 को रा.प्र.सं. के पूरे समय के निदेशक के रूप में नियुक्त हुए|

1 ऐतिहासिक इमारत क़ुतुब मीनार के शानदार दृश्य के बीच हरियाली के साथ चट्टानी इलाके से घिरे 21 एकड़ के इस क्षेत्र में इमारतों का निर्माण 27 अक्टूबर 1983 को शुरू हुआ, जब सोसायटी के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर एम.जी.के. मेनन ने पहली इमारत ‘स्कॉलर्स होम’ की आधारशिला रखी| प्रयोगशालाओं, पशु घरों, आवासीय अपार्टमेंट, अनुसंधान स्कॉलर्स होम, सभागृह, कैंटीन, और एक स्वीमिंग पूल के निर्माण के वक्त, कैम्पस के वास्तु की डिज़ाइन की अवधारणा को इस तरह तय किया गया कि इस चट्टानी इलाके की प्राकृतिक निशानियाँ संरक्षित रह सकें| इसके पूरे होने के बाद, अंतरिम गतिविधि का एक हिस्सा स्कॉलर होम में स्थानांतरित कर दिया गया, इसके अतिरिक्त, दक्षिण दिल्ली की कैलाश 7000 वर्ग फुट का स्थान किराए पर कॉलोनी में बन रही एक नई इमारत में लिया गया था|

2 यह संस्थान औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के द्वारा 6 अक्टूबर, 1986 को राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया| उद्घाटन समारोह में , संस्थान के शोध कार्यक्रमों से सम्बंधित विषयों पर दो अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों द्वारा उल्लेखित किया गया| यह संगोष्ठी ही “आज और नब्बे के दशक के लिए गर्भनिरोध शोध” और “ टीकाविज्ञान में प्रगति” पर दुनिया भर के अग्रणी कार्यकर्ताओं को साथ में लाने के लिए उत्तरदायी है| 1990 तक राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान’ (रा.प्र.सं.) एक बेहतर और सक्रिय अनुसंधान संस्थान में बदल गया| विभिन्न शोध समूहों, डॉक्टरेट छात्रों, पोस्ट डॉक्टरेट साथियों और अत्याधुनिक बुनियादी सुविधाओं के सहारे यह देश का एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान बन गया| इस काल ने अति उत्तम अनुसंधान सुविधाओं के साथ एक कार्यात्मक प्रयोगशाला परिसर के विकास को ही नहीं देखा बल्कि समकालीन जीवविज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी के कई क्षेत्रो में विस्तृत अनुसंधान गतिविधियों का आनंद भी उठाया है|

2पिछले दो दशकों में राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान(रा.प्र.सं.) प्रतिराक्षविज्ञान, संक्रामक बीमारियों, प्रजनन संबंधी जीव विज्ञान और संरचनात्मक और रासायनिक जीव-विज्ञान के क्षेत्र में विकास के चरम पर पहुँच कर निखर चुका है, अनेक हाई प्रोफाइल प्रकाशनों से यह स्पष्ट होता है| राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान (रा.प्र.सं.) ने हमेशा ही अपने उद्धमशील प्रयासों से यथार्थवादी खोज के साथ नए प्रयोगों की संभावनाओं को विकसित कर, आधारभूत मौलिक अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्टता लाने का प्रयास किया है| राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान (रा.प्र.सं.) के तत्कालीन निदेशकों जी. पी. तलवार, डॉ. एस.के. बसु और प्रोफ़ेसर ए. सुरोलिया के नेतृत्व में हम इस परंपरा को जारी रखने और अच्छे कार्य समूह पर निर्माण की उम्मीद करते हैं|